Friday, April 10, 2009

Kabir

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥


जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।

कांकर पाथर जोरि कै मस्जिद लई बनाय।
ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय।।

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